A fervent appeal, as most such appeals are, to God. भर दो झोली is used as a metaphor for achieving unity with God, although in the form of a more mundane gratification.
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तेरे दर्बार में दिल थाम के वो आता है
जिसको तू चाहे, है नबी, तू बुलाता है
जिसको तू चाहे, है नबी, तू बुलाता है
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भर दो झोली मेरी, या मुहम्मद,
लौटकर मैं न जाऊंगा खाली
बंद दीदों में भर डाले आँसू
सिल दिए मैं ने दर्दों को दिल में
जब तलक तू बना दे न बिगड़ी
दर से तेरे न जाए सवाली
भर दो झोली मेरी, या मुहम्मद,
लौटकर मैं न जाऊंगा खाली
लौटकर मैं न जाऊंगा खाली
बंद दीदों में भर डाले आँसू
सिल दिए मैं ने दर्दों को दिल में
जब तलक तू बना दे न बिगड़ी
दर से तेरे न जाए सवाली
भर दो झोली मेरी, या मुहम्मद,
लौटकर मैं न जाऊंगा खाली
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भर दो झोली ... आखा जी
भर दो झोली ... हम सब की
भर दो झोली ... नबी जी
भर दो झोली मेरी सरकार-ए-मदीना
लौटकर मैं न जाऊंगा खाली
भर दो झोली ... हम सब की
भर दो झोली ... नबी जी
भर दो झोली मेरी सरकार-ए-मदीना
लौटकर मैं न जाऊंगा खाली
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दम दम अली अली दम अली अली
…
अली
…
अली
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