Saturday, January 31, 2015

चिंगारी कोई भड़के, तो सावन उसे बुझाए

When you discover some good characteristic about a matter than you knew previously, there is a certain immense pleasure.

I first heard this song nearly four decades ago. Even though I liked the song, and even hummed it on occasion, I didn't know that it is in Raag Bhairavi; neither did I know it projected a certain sadness by invoking the ideas in proverbs such as the Fox Guarding the Hen house.

There is a Kannada proverb with a similar import: ಬೇಲಿಯೇ ಎದ್ದು ಹೊಲ ಮೇಯ್ದರೆ






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चिंगारी कोई भड़के, तो सावन उसे बुझाए
सावन जो अगन लगाए, उसे कौन बुझाए?
पथझड जो बाग़ उजाड़े, वो बाग़ बहार खिलाये
जो बाग़ बहार में उजड़े, उसे कौन खिलाये
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[हमसे मत पूछो कैसे, मंदिर टूटा सपनों का] - 2
लोगों की बात नहीं है, यह किस्सा है अपनों का
कोई दुश्मन ठेस लगाए, तो मीत जिया बहलाये
मनमीत जो घाव लगाए, उसे कौन मिटाये?
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[न जाने क्या हो जाता, जाने हम क्या कर जाते] - 2
पीते हैं तो ज़िंदा हैं, न पीते तो मर जाते
दुनिया जो प्यासा रख्खे, तो मदिरा प्यास बुझाए
मदिरा जो प्यास लगाए, उसे कौन बुझाए?
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[माना तूफ़ान के आगे, नहीं चलता ज़ोर किसी का] - 2
मौजों का दोष नहीं है, ये दोष है और किसी का
मझधार में नैया डोले, तो मांझी पार लगाए
मांझी जो नाव डुबोये, उसे कौन बचाये?

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