An interesting description how romantic love can trigger other actions. In this case, the poet describes the male lover as having become a poet (शायर), a lover (आशिक), a friend (दोस्त), a respecting (बंदगी) person, etc.
There is a subtle double entendre in this song; for a cursory observer, it might appear that the dancer is the object of the male lover; not so, and he is referring to another girl; this fact becomes evident if you know the story.
Bollywood excels in weaving hummable music into stories somewhat unique to the times.
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There is a subtle double entendre in this song; for a cursory observer, it might appear that the dancer is the object of the male lover; not so, and he is referring to another girl; this fact becomes evident if you know the story.
Bollywood excels in weaving hummable music into stories somewhat unique to the times.
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मैं शायर तो नहीं
[मैं शायर तो नहीं, मगर ये हसीं
जब से देखा मैंने तुझको, मुझको, शायरी आ गयी] - 2
मैं आशिक तो नहीं, मगर ये हसीं
जब से देखा मैंने तुझको, मुझको, आशिकी आ गयी
मैं शायर तो नहीं
[मैं शायर तो नहीं, मगर ये हसीं
जब से देखा मैंने तुझको, मुझको, शायरी आ गयी] - 2
मैं आशिक तो नहीं, मगर ये हसीं
जब से देखा मैंने तुझको, मुझको, आशिकी आ गयी
मैं शायर तो नहीं
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[प्यार का नाम मैंने सुना था मगर
प्यार क्या है, ये मुझको नहीं थी खबर] - 2
मैं तो उलझा रहा उलझनों की तरह
दोस्तों में रहा दुश्मनों की तरह
मैं दुश्मन तो नहीं
मैं दुश्मन तो नहीं, मगर ये हसीं,
जब से देखा मैंने तुझको, मुझको, दोस्ती आ गयी
मैं शायर तो नहीं
प्यार क्या है, ये मुझको नहीं थी खबर] - 2
मैं तो उलझा रहा उलझनों की तरह
दोस्तों में रहा दुश्मनों की तरह
मैं दुश्मन तो नहीं
मैं दुश्मन तो नहीं, मगर ये हसीं,
जब से देखा मैंने तुझको, मुझको, दोस्ती आ गयी
मैं शायर तो नहीं
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[सोचता हूँ अगर मैं दुआ माँगता
हाथ अपने उठाकर मैं क्या माँगता?] - 2
जब से तुझसे मुहब्बत मैं करने लगा
तब से जैसे इबादत मैं करने लगा
मैं काफिर तो नहीं
मैं काफिर तो नहीं, मगर ये हसीं
जब से देखा मैंने तुझको, मुझको, बंदगी आ गयी
मैं शायर तो नहीं, मगर ये हसीं
जब से देखा मैंने तुझको, मुझको, शायरी आ गयी
मैं शायर तो नहीं
हाथ अपने उठाकर मैं क्या माँगता?] - 2
जब से तुझसे मुहब्बत मैं करने लगा
तब से जैसे इबादत मैं करने लगा
मैं काफिर तो नहीं
मैं काफिर तो नहीं, मगर ये हसीं
जब से देखा मैंने तुझको, मुझको, बंदगी आ गयी
मैं शायर तो नहीं, मगर ये हसीं
जब से देखा मैंने तुझको, मुझको, शायरी आ गयी
मैं शायर तो नहीं
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