This is a second song I have encountered recently that uses the phrase पंथ निहार to describe the act of waiting for someone by looking at the road on which the expectant person would come. The first one is मेरे जनम मरण के साथी.
... ♫ ♫ ♫ ♫ ...
आजा रे परदेसी
मैं तो कब से खडी इस पार,
ये अखियाँ थक गयीं पंथ निहार
मैं दिए की ऐसी बाती,
जल न सकी जो बुझ भी न पाती
आ मिल मेरे जीवन साथी, ओ || आजा रे परदेसी ... ||
तुम संग जनम जनम के फेरे,
भूल गए क्यों साजन मेरे
तडपत हूँ मैं सांज सवेरे, ओ || आजा रे परदेसी ... ||
मैं नदिया फिर भी प्यासी,
भेद ये गहरा बात ज़रा सी
बिन तेरे हर साँस उदासी, ओ || आजा रे परदेसी ... ||
No comments:
Post a Comment