Sunday, May 09, 2010

उसको नहीं देखा हमने कभी

On Mother's Day 2010, it is somewhat appropriate that we take a look at this song I encountered recently. While although मात्र देवो भव is a well known concept ingrained in Indian culture at an early age of a child, this song is a very good and melodious elaboration of that concept.





उसको नहीं देखा हमने कभी
पर इसकी ज़रुरत क्या होगी
ए माँ ... ए माँ
तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी
क्या होगी
उसको नहीं देखा हमने कभी

इनसान तो क्या, देवता भी
आँचल में पले तेरे
है स्वर्ग इसी दुनिया में कदमों के तले तेरे
ममता ही लुटायें जिसके नयन ... हो ...
ममता ही लुटायें जिसके नयन
ऐसी कोई मूरत क्या होगी
ए माँ ... ए माँ
तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी
क्या होगी
उसको नहीं देखा हमने कभी

जो धूप जलायें दुखों की
जो ग़म की घटा बरसे
यह हाथ दुआवाले रहते हैं सदा सर पे
तू है तो अँधेरे पथ में हमें ... हो ...
तू है तो अँधेरे पथ में हमें
सूरज की ज़रुरत क्या होगी
ए माँ ... ए माँ
तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी
क्या होगी
उसको नहीं देखा हमने कभी

कहते हैं तेरी शान में जो
कोई ऊंचे बोल नहीं
भगवान के पास भी माता तेरे प्यार का मोल नहीं
हम तो यहीं जाने तुझसे बड़ी ... हो ...
हम तो यहीं जाने तुझसे बड़ी
संसार की दौलत क्या होगी
ए माँ ... ए माँ
तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी
क्या होगी
उसको नहीं देखा हमने कभी
पर इसकी ज़रुरत क्या होगी
ए माँ ... ए माँ
तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी
क्या होगी
उसको नहीं देखा हमने कभी

No comments: